Kala-Azar ( कालाजार ) का इलाज
कालाजार धीरे-धीरे विकसित होने वाला एक देशी रोग है जो एक कोशीय परजीवी या जीनस लिस्नमानिया से होता है। कालाजार के बाद डरमल लिस्नमानियासिस (पीकेडीएल) एक ऐसी स्थिति है जब लिस्नमानिया त्वचा कोशाणुओं में आते हैं और वहां रहते हुए विकसित होते है। कई कालाजार में कुछ वर्षों के उपचार के बाद पी के डी एन प्रकट होते हैं।
लक्षण –
- बुखार अक्सर रूक-रूक कर या तेजी से तथा दोहरी गति से आता है;
- भूख न लगना,
- पीलापन और वजन में कमी जिससे शरीर में दुर्बलता;
- कमजोरी;
- प्लीहा का अधिक बढ़ना-प्लीहा तेजी से अधिक बढ़ता है और सामान्यत: यह नरम और कड़ा होता है; जिगर का बढ़ना लेकिन प्लीहा के जितना नहीं,
- बाल झड़ सकते हैं।
- गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है।
इसी से इसका नाम कालाजार पड़ा या काला बुखार।
संक्रमण – कालाजार एक रोग वाहक जाति का रोग है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार फ्लैबोटोमस अर्जन्टाइप्स जीन्स वाली मक्खी भारत में कालाजार का रोगवाहक है; भारत में कालाजार छूत की एक विशेष प्रकार की बीमारी है क्योंकि इसमें एन्थ्रोपोनिटिक होता है। मनुष्य से यह बीमारी फेलती है: महिला मक्खी, इस रोग से ग्रस्त मनुष्य को काटकर वहां से कीटाण्ओं (एम्स्टीगोट या एल डी बाडी) को लेकर यह बीमारी फैलाती है।
Treatment –
- inj. Na-Stibogluconate (100mg/ml). 20mg/kg/day for 28 day
- Test- R.D.T Test